HAQ के बाद हर कोई यामी गौतम के बारे में क्यों बात कर रहा है, इसकी एक वजह है। सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने दमदार अभिनय किया है, बल्कि इसलिए भी कि अब उन्हें आखिरकार उसी रूप में देखा जा रहा है, जिसकी वो हमेशा से हकदार रही हैं। HAQ में यामी अपने किरदार को पूरी तरह जी लेती हैं। हर नजर, हर ठहराव सच्चा महसूस होता है। उनके भीतर एक शांत तीव्रता है जो आपको अपनी ओर खींच लेती है; वो आपका ध्यान मांगती नहीं, बल्कि सहजता से उसे थाम लेती हैं। आज के समय में ऐसा काम दुर्लभ लगता है—ईमानदार, बिना जल्दबाजी वाला, और गहराई से महसूस किया गया। इसमें आश्चर्य नहीं कि बहुत लोग कह रहे हैं कि वे नेशनल अवॉर्ड की हकदार हैं। जो चीज़ और भी खास बनाती है, वह है इस पल की स्वाभाविकता। यामी यहां एकदम से नहीं पहुंची हैं। यह एक स्थिर, क्रमिक सफर रहा है—विकी डोनर, बदलापुर, उरी, बाला, ए थर्सडे, और आर्टिकल 370 जैसी फिल्मों के साथ, जहां हर भूमिका ने उनकी कारीगरी में एक नई परत जोड़ी है। आप उस आत्मविश्वास को महसूस कर सकते हैं जो किसी ऐसे व्यक्ति में होता है जिसने सार्वजनिक रूप से सीखा है लेकिन निजी तौर पर विकसित हुई है। और अब HAQ के साथ, वो साल को एक ऊंचाई पर खत्म करती हैं। कोई शोर-गुल वाला ऊंचा नहीं, बल्कि गूंज छोड़ने वाला। ऐसा प्रदर्शन जो खत्म होने के बाद भी आपके साथ रहता है, जो फिल्म खत्म होने के बाद भी आपको उनके बारे में सोचने पर मजबूर करता है। यामी में कुछ बहुत दुर्लभ है। वो याद दिलाती हैं कि किसी अभिनेता को सुने जाने के लिए शोर मचाने की जरूरत नहीं होती। कि दृढ़ता शांत भी हो सकती है। और शक्ति स्थिर भी।
[rank_math_breadcrumb]
‘हक’ से यामी का करियर नई ऊंचाईयों पर: दमदार अभिनय से नेशनल अवॉर्ड देने की उठी मांग, शाह बानो केस पर आधारित है फिल्म
Subhash Dhayal
Published on: 14 November, 2025
Join our WhatsApp Channel
खबरें और भी हैं...









