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नए लेबर कोड से टेक-होम सैलरी कम हो सकती है: बेसिक पे अब CTC का कम से कम 50% होना जरूरी, PF-ग्रेच्युटी कंट्रीब्यूशन बढ़ेगा; जानें डिटेल्स

Subhash Dhayal

Published on: 23 November, 2025

केंद्र सरकार ने 29 पुराने लेबर लॉज को चार नए कोड्स में मिला दिया है। ये कोड- वेजेज, इंडस्ट्रियल रिलेशंस, सोशल सिक्योरिटी और सेफ्टी-हेल्थ पर हैं। 21 नवंबर 2025 से वेज कोड लागू हो गया है। जिसके तहत कंपनियों को अब सैलरी स्ट्रक्चर बदलना पड़ेगा, जिसमें बेसिक सैलरी टोटल CTC का कम से कम 50% होनी जरूरी है। इससे प्रॉविडेंट फंड और ग्रेच्युटी के कंट्रीब्यूशन बढ़ेंगे, लेकिन टेक-होम सैलरी कम हो सकती है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ये चेंजेस कर्मचारियों को लॉन्ग-टर्म बेनिफिट्स तो देंगे, लेकिन शॉर्ट-टर्म में जेब पर बोझ बढ़ा सकते हैं। क्या हैं नए लेबर कोड्स, कैसे लागू हो रहे हैं? भारत में पहले 29 अलग-अलग लेबर लॉज थे, जो कन्फ्यूजिंग थे। अब इन्हें चार कोड्स में समेट दिया गया है- कोड ऑन वेजेज (2019), इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड (2020), कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी (2020) और OSHWC कोड (2020)। वेज कोड 21 नवंबर 2025 से एक्टिव हो गया है। अगले 45 दिनों में डिटेल्ड रूल्स नोटिफाई होंगे। जिसके तहत सभी कंपनियों को अपने सैलरी स्ट्रक्चर को रीस्ट्रक्चर करना होगा। नए कोड्स में मुख्य बदलाव ये है कि बेसिक सैलरी, डियरनेस अलाउंस और रिटेनिंग अलाउंस मिलाकर CTC का 50% या गवर्नमेंट नोटिफाई % होना चाहिए। ये वेजेज की डेफिनेशन को स्टैंडर्डाइज करता है, ताकि PF, ग्रेच्युटी और पेंशन कैलकुलेशन में कंसिस्टेंसी आए। पहले कंपनियां बेसिक को कम रखकर अलाउंस बढ़ा देती थीं, जिससे कंट्रीब्यूशन कम होता था। अब ये ट्रिक काम नहीं करेगी। उदाहरण से समझें-टेक-होम सैलरी पर कैसे असर पड़ेगा नए रूल्स से कर्मचारियों की मंथली टेक-होम कम हो सकती है, क्योंकि CTC फिक्स रहने पर डिडक्शंस बढ़ जाएंगे। मान लीजिए किसी की CTC 50,000 रुपए है। पहले बेसिक 30-40% (15,000-20,000 रुपए) होता था, तो PF कंट्रीब्यूशन (12% बेसिक पर) 1,800-2,400 रुपए का होता। अब बेसिक 50% यानी 25,000 रुपए करना पड़ेगा, तो PF 3,000 रुपए हो जाएगा। मतलब टेक-होम सैलरी 1,200 रुपए कम हो जाएगी। ग्रेच्युटी भी अब ‘वेजेज’ पर कैलकुलेट होगी, जिसमें बेसिक के अलावा अलाउंस (HRA और कन्वेयंस को छोड़कर) जुड़ेंगे। इससे ग्रेच्युटी अमाउंट बढ़ेगा, लेकिन ये भी CTC से ही आएगा। नंगिया ग्रुप की पार्टनर अनजली मल्होत्रा ने कहा, ‘वेजेज में अब बेसिक पे, डियरनेस अलाउंस और रिटेनिंग अलाउंस शामिल हैं। 50% टोटल रेम्युनरेशन को ऐड करना पड़ेगा।’ ऐसे में छोटे-मझोले कर्मचारी सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। PF और ग्रेच्युटी कंट्रीब्यूशन कैसे बढ़ेगा, क्या हैं फायदे? PF 12% ‘वेजेज’ पर होगा, जो पहले सिर्फ बेसिक पर था। ग्रेच्युटी कैलकुलेशन भी वेजेज पर शिफ्ट हो गया है। फिक्स्ड-टर्म एम्प्लॉई को अब सिर्फ 1 साल सर्विस के बाद ग्रेच्युटी मिलेगी, पहले 5 साल लगते थे। यूनिवर्सल मिनिमम वेजेज भी आएगा, जो लिविंग स्टैंडर्ड्स पर बेस्ड होगा। यह ऑर्गनाइज्ड और अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर के सभी वर्कर्स को कवर करेगा। गिग वर्कर्स (जैसे डिलीवरी बॉय) के लिए कंपनियों को 1-2% टर्नओवर पर कंट्रीब्यूशन देना होगा (5% पेमेंट्स तक कैप्ड)। EY इंडिया के पुनीत गुप्ता ने कहा, ‘ग्रेच्युटी पेमेंट्स बढ़ेंगे क्योंकि कैलकुलेशन सिर्फ बेसिक से आगे वेजेज पर होगा।’ लॉन्ग-टर्म में ये रिटायरमेंट सिक्योरिटी को स्ट्रॉन्ग बनाएगा, लेकिन कंपनियां अलाउंस घटाकर बैलेंस करने की कोशिश करेंगी। क्यों लाए गए ये चेंजेस, गवर्नमेंट का प्लान क्या? ये कोड्स वर्कफोर्स को मॉडर्नाइज करने के लिए हैं। पहले लॉज आउटडेटेड थे, जो सिर्फ 30% वर्कर्स को कवर करते थे। अब यूनिफॉर्म वेज डेफिनेशन से डिस्क्रिमिनेशन कम होगा। हायरिंग और वेजेज में जेंडर इक्वालिटी आएगी। नए कानून से लेऑफ थ्रेशोल्ड 100 से 300 वर्कर्स हो गया। वहीं छोटी फैक्ट्रीज के लिए 20-40 वर्कर्स तक रिलैक्सेशन दिया गया है। ओवरटाइम डबल रेट पर मिलेगा। गिग इकोनॉमी को सपोर्ट करने के लिए सोशल सिक्योरिटी कंट्रीब्यूशन अनिवार्य किया गया है। इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुचिता दत्ता ने कहा, ‘नए कोड्स वेजेज डेफिनेशन को यूनिफाई करते हैं। इससे रिटायरमेंट सिक्योरिटी बेहतर होगी, लेकिन अगर एम्प्लॉयर्स अलाउंस घटाएंगे तो टेक-होम सैलरी कम हो सकती है।’ गवर्नमेंट का फोकस डिजिटाइज्ड कंप्लायंस- वन-लाइसेंस सिस्टम, रैंडमाइज्ड इंस्पेक्शंस और फाइन कंपाउंडिंग पर है। एम्प्लॉयर्स पर क्या बोझ, क्या राहत मिलेगी? कंपनियों को सैलरी पैकेज री-स्ट्रक्चर करना पड़ेगा, जिससे लेबर कॉस्ट बढ़ सकती है। PF-ग्रेच्युटी पर ज्यादा कंट्रीब्यूशन से ओवरहेड्स ऊपर जाएंगे। गिग प्लेटफॉर्म्स को 1-2% टर्नओवर देना पड़ेगा। लेकिन राहत ये है कि डिक्रिमिनलाइजेशन से जेल की सजा कम, सिर्फ मॉनेटरी पेनल्टी लगेगी। नए कानून में वर्क-फ्रॉम-होम को रेकग्नाइज किया गया है। वहीं फ्लेक्सिबल आवर्स के लिए म्यूचुअल एग्रीमेंट होगा। बड़े यूनिट्स के लिए लेऑफ आसान हो गया। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये चेंजेस MSMEs को ईज देगा, लेकिन बड़े कॉर्पोरेट्स को रिस्ट्रक्चरिंग में टाइम लगेगा। फ्यूचर में क्या हो सकता है, कर्मचारियों को कैसे फायदा? भविष्य में ये कोड्स अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर को ज्यादा कवर करेंगे और डिस्क्रिमिनेशन घटेगा। डिजिटल कंप्लायंस से अपॉइंटमेंट लेटर्स फॉर्मल होंगे। गिग वर्कर्स को सोशल सिक्योरिटी मिलेगी, जो इकोनॉमी को बूस्ट देगा। लेकिन टेक-होम पर असर को बैलेंस करने के लिए गवर्नमेंट CTC एडजस्टमेंट गाइडलाइंस जारी कर सकती है। ओवरऑल ये कोड्स वर्कर्स वेलफेयर को स्ट्रॉन्ग बनाएंगे, लेकिन शॉर्ट-टर्म चेंजेस से नेगोशिएशंस बढ़ेंगे। अगर आपका CTC 24,000 रुपए तक है, तो यूनिवर्सल वेज पेमेंट का फायदा मिलेगा। ये खबर भी पढ़ें… अब 5 की जगह 1 साल में ग्रेच्युटी मिलेगी: ओवरटाइम पर दोगुना पेमेंट, जानें नए लेबर-कोड्स से क्या-क्या फायदे मिलेंगे केंद्र सरकार ने 29 पुराने लेबर लॉज को मिलाकर चार नए कोड बनाए हैं, जो शुक्रवार से लागू कर दिए गए हैं। नए कानून से कर्मचारी को 5 की जगह सिर्फ 1 साल में भी ग्रेच्युटी का फायदा मिलेगा। इसके अलावा ग्रेच्युटी की लिमिट 20 लाख रुपए तक बढ़ाई गई है, जो टैक्स-फ्री रहेगी। पूरी खबर पढ़ें…

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